विकास के मॉडल को काम में लाना: पश्चिम बंगाल में शिक्षण और सीखने के नए तरीके

एक अदृश्य इकाई, एक छोटे से वाइरस ने वह सब कुछ बदल दिया है जिसे हम सामान्य के रूप में जानते थे। भारत में तालाबंदी से सब कुछ ठप पड़ गया। स्कूलों और कार्यक्रमों के बंद होने से विशेष आवश्यकता वाले लोगों के माता-पिता एक मुश्किल स्थिति में पड़ गए और कभी-कभी ऐसा लगता है कि सब कुछ खतरे में है। इसमें कोई संदेह नहीं है, एक संकट के भीतर भी संभावनाएं और आशाएं छुपी हैं, और ऑटिज्म सोसाइटी, पश्चिम बंगाल ने उन मजबूत विचारों को सामने रखने का फैसला किया जिन्हें वे सीख रहे हैं और जिन्हें छात्रों के अनुकूल बनाकर  उनकी कामयाबी में मदद की जा सकती है। विकास का मॉडल, सामाजिक भूमिका मूल्यवर्द्धन सिद्धांत का एक प्रमुख विषय है, इसमें कई व्यापक सिद्धांत शामिल हैं, जिनके फलस्वरूप विकलांगता य़ुक्त लोगों के साथ- साथ बाकी सभी लोगों के लिए भी काफी कुछ सीखने की संभावना है। यह उन विचारों को व्यवहार में लाने का एक अच्छा अवसर था।

शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए, उन्होंने ऑनलाइन कक्षाएं उपलब्ध करानी शुरू कर दीं। सामाजिक कहानियां लिखी गईं, दृश्य तैयार किए गए और सभी अभिभावकों को प्रसारित किए गए। लेकिन ऑन लाइन पर सामूहिक शिक्षण संतोषप्रद नहीं लग रहा था। एक-के साथ-एक के बातचीत करने की कमी महसूस हो रही थी  और इसलिए उन्होंने प्रत्येक छात्र के साथ सत्र को व्यक्तिगत बनाने का फैसला किया। वैयक्तिकरण एक सफल विकासात्मक दृष्टिकोण की पहचान है और इसके द्वारा वे व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक छात्र के लिए सीखने के मार्ग को डिजाइन करने के लिए प्रेरित हुए।

वीडियो कॉल के साथ एक व्यक्ति केन्द्रित ऑनलाइन शिक्षण की संभावना की कल्पना की गई। व्यक्तिगत शिक्षा योजनाओं (IEP) की समीक्षा की गई और संशोधित की गई और उच्च व्यक्तिगत, व्यक्ति-केंद्रित तरीकों को शामिल करते हुए सिखाने और सीखने के नए तरीकों के लिए अनुकूलित किया गया। ऑनलाइन कक्षाएं शुरू हुईं जिसमें शिक्षक अपने छात्रों के साथ आभासी तौर पर और व्यक्तिगत रूप से संबंध बनाने का प्रयास किए। इसलिए, 14-वर्षीय दीप्यमान के शिक्षक ने पहले सप्ताह की कार्यक्रम सूची को तैयार कर उसे भेज दिया, इस उम्मीद से कि यह सफल होगा। शिक्षक ने उसके साथ उसके पसंदीदा गाने गाए, स्कूल में बिताए पिछले दिनों के बारे में याद किया और दोनों ने आपस में साझा किया कि कैसे उनको स्कूल की बहुत याद आ रही थी । शिक्षक ने सामाजिक कहानियों का उपयोग कर  महामारी के बारे में बात किया और बतलाया कि कैसे हम सभी को अपनी दिनचर्या बदलनी होगी ।

फिर शिक्षक दीप्यमान को अपने गांव के एक आभासी दौरे पर ले गये, जो कोलकाता में दीप्यमान के घर से बहुत दूर था। इधर, हरे खुले स्थानों, तालाबों, सब्जियों को उगाने, खेतों में गायों और नारियल के पेड़ों को देखकर विस्मय से दीपयमान की रुचि तेज हो गई। फल जो उसे पसन्द थे और जिन्हें उसने केवल खाने की मेज पर देखा था यहां पेड़ों पर बढ़ रहे थे – केले, नींबू, आम। चमकीले हिबिस्कस के फूल लाल, पीले और गुलाबी रंगों में दिखाए गए और उनका वर्णन किया गया। रंगों के बारे में, आकार, जानवरों के प्रकार आदि विषयों को भी स्वाभाविक रूप से इन आभासी दौरों का हिस्सा बनाया गया । इसके बाद दीप्यमान की नई बातें को सीखने के लिए टेक्नोलोजी का उपयोग करने की उत्सुकता काफी बढ़ गई।

अन्य शिक्षक भी इस प्रक्रिया में शामिल हुए,  उसकी पसंदीदा गतिविधियों के अनुकूल पाठ डिजाइन करने में और  जिन तरीकों में उसकी रूचि थी उसके अनुरूप ऑक्यूपेशनल थेरापी के लक्ष्यों को स्वाभाविक रूप से शिक्षण की प्रक्रिया में शामिल करने के द्वारा।

उसके पश्चात सामूहिक कक्षाएं शुरू की गईं  और दीप्यमान अपने दोस्तों को स्क्रीन पर देखकर बहुत खुश हुआ। उच्च स्तर की वैयक्तिकता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, प्रत्येक वर्ग में व्हाट्स ऐप के प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए सिर्फ चार छात्रों को जोड़ा गया। “गूगल मीट” का उपयोग करते हुए नियमित रूप से परिवारों के साथ बैठक की भी व्यवस्था की गई  और छात्र अपने माता-पिता को एक साथ बात करते और हँसते हुए देख कर काफी आश्वस्त महसूस किए। परिवार अपने बेटे और बेटियों की सभी अप्रत्याशित उपलब्धियों की कहानियों को साझा कर पाए  और सीखने की प्रक्रिया का समर्थन करने के तरीकों को भी एक दूसरे से साझा कर सके।

तो यह “ नया सामान्य” दीप्यमान की ऑनलाइन शिक्षा का आनंद लेने के मामले में “पुराने सामान्य”  से बेहतर साबित हुआ है  और इसके द्वारा वैयक्तीकरण की प्रक्रिया को इस स्तर पर लाया गया है जो अन्यथा शायद कभी भी हासिल नहीं हो सकता था। दीप्यमान वास्तव में इस व्यक्तिगत सेट-अप में काफी बेहतर कर रहा है और टेक्नोलोजी के प्रति उसकी विशेष रूचि के बारे में कोई नहीं जानता था। एक- के साथ -एक कक्षा के दौरान, वह अपने पाठ को अच्छी तरह नियंत्रण में रख पाया और उसका ध्यान भी आसानी से विचलित नहीं हुआ। बाद में जब वह एक- के साथ- एक कक्षा में अनुभवी बन गया, तो उसका परिचय केवल दो या तीन छात्रों के साथ होने वाली सामूहिक कक्षाओं से कराया गया। लगता था जैसे सब कुछ अपने सही तरीके से हो रहा है।

कोविड -19 के समय में लॉकडाउन के दौरान हम देख पाए कि न केवल ऑटिज़्म युक्त व्यक्ति बदलाव के लिए अपने को तैयार कर सकते हैं बल्कि  वे काफी प्रगति भी कर सकते हैं। हालांकि, आवश्यक भौतिक सामग्री और स्थान आदि का समर्थन होना जरूरी है  और शिक्षकों के रूप में हमारी मानसिकता  भी व्यक्ति-केंद्रित होने की संभावनाओं को अपनाने के लिए तैयार रहनी चाहिए। कोविड -19 के इन हताशा भरी परिस्थितियों के दौरान, यह एक आंख खोलने वाली सीख थी। विकासात्मक दृष्टिकोण को अपनाने के लिए जरूरी उच्च अपेक्षाओं को ना सिर्फ पूरा किया गया वरन ऑटिज्म सोसाइटी, पश्चिम बंगाल के छात्रों द्वारा इससे भी बढ़ कर सफलता हासिल की गई। शायद यह अदम्य मानवीय भावना का एक और उदाहरण है।