जीवन में रंग भर रहा है

vinita close up

भारत और दुनिया भर में, समाज से अलग और दूर, बंद चारदीवारियों में रहने का संस्थागत अनुभव अपने साथ बड़ी संख्या में जीवन के जख्मों के अनुभवों को लेकर आता है। कभी-कभी गहरी अस्वीकृति और समुदाय से अलगाव के प्रभाव के कारण लोग अपने जीवन में अंदरूनी रूख अख्तियार कर लेते हैं, इसलिए वे गुम-सुम, आज्ञाकारी व्यक्ति बन जाते और अपने को बचा कर रखने के लिए फुसफुसाने से अधिक ऊँचे स्वर में कभी बातें भी नहीं करते हैं। कुछ परिस्थितियों में, यह एक जीवित रहने की प्रवृत्ति है जो खतरनाक स्थानों में अपने जीवन या अपने अंगों को बचाने के लिये अपना ली जाती है, जब उन्हें ऐसी संस्थाओं में कभी-कभी जीवन भर के लिए बंद कर दिया जाता है,  केवल इस कारण कि उन पर विकलांगता का लेबल लग गया है। सुश्री विनीता को ऐसे ही एक स्थान पर छोड़ दिया गया था, और उसके अपने परिवार ही ने उसे त्याग दिया था। कोई केवल उन परिस्थितियों की कल्पना ही कर सकता है, जिसमें एक परिवार अपनी बहन, या अपनी माँ, या अपनी बेटी को त्यागने के लिए प्रेरित होता है। परिस्थितियों के बोझ से दबे हुए, अपने परिवार द्वारा पूरी तरह से त्याग दिए जाने के बाद, वह खोई हुई और अकेली पड़ी थी, एक अनजाने स्थान पर एक अजनबी की तरह।  वह वहाँ की भाषा, वहाँ के लोगों या उन परिस्थितियों को नहीं जानती थी जिसके कारण उसे उस स्थान में बंद रखा गया था। वह हिंदी में बात नहीं कर सकती थी। उसे जो कुछ कहा जाता, वह उसे मानती। आज्ञाकारी। टूटी हुई। लगभग अदृश्य सा उसका जीवन था।

लेकिन किसी ने वास्तव में उसे उस जगह, उस अवस्था में देखा। और क्योंकि उसे देखा गया, और उसका दर्द समझा गया,  उसके लिए जीवन अप्रत्याशित रूप से खुल गया, क्योंकि हर्बर्टपुर में एक छोटे से घर में जिसे तीन महिलाएँ कुछ सहायक कर्मचारियों के साथ साझा करती थीं, उन्होंने उसे चोट और नुकसान के उस स्थान से निकलकर एक वास्तविक घर में जाने पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया।  एक वास्तविक समुदाय, और संभावना और जीवन का एक स्थान। हिचकिचाते हुए, और बहुत अनिश्चित रूप से, वह वहाँ से निकलने के लिए तैयार हुई, लेकिन उसे जरा भी निश्चय नहीं था कि उसके लिए अच्छी चीजें संभव भी थीं।प्रारंभ में, सुश्री विनीता चुप रहतीं और उनसे जो कुछ भी करने के लिए कहा जाता वह, उसका पालन करती थी। वह अपने आस-पास की परिस्थितियों को नहीं समझ पा रही थी और चकित लगती थी, लेकिन वह एक ऐसे व्यक्ति को जानती थी जो उसकी मातृभाषा में थोड़ी बात कर सकती थी, और वह उसे अधिक से अधिक शब्द सिखाने लगी ताकि वे आपस में संवाद कर सकें। कुछ भी नया करने के लिए कहे जाने पर उसकी पहली प्रतिक्रिया होती थी -‘नहीं’ परन्तु फिर भी, वह आज्ञाकारी थी। जैसे-जैसे वह पूरी तरह से इस अलग माहौल वाले नई जगह में धीरे-धीरे अभ्यस्त होने लगी, तो  उस समाज के संबंध में जिसने उसे अस्वीकार कर दिया था, उसने भी यहां-वहां अपनी राय व्यक्त करना शुरू कर दिया,परन्तु अब यह फुसपुसाहट भरी आवाज में नहीं था। शुरुआत में यह धीमा और झिझकाहट भरा था, लेकिन आप उसके आत्मविश्वास को बढ़ते हुए देख सकते थे। और फिर यह सुझाव दिया गया कि वह संभवतः स्थानीय जनरल स्टोर में काम कर सकती है। उसका तत्काल उत्तर था- “नहीं, मैं नहीं जाऊंगी”। हालांकि, उसके सहयोगियों ने उससे इस बारे में बात करना शुरू कर दिया। वे उसे थोड़ी देर के लिए दुकान पर खरीददारी के लिए ले गए,  और चारों ओर देखने के लिए, वहां के लोगों से मिलने के लिए, और यह विचार करने के लिए कि वहां काम करना और कमाई करना कैसा लग सकता है। और फिर वह दिन आया जब वह स्टोर में स्टाफ के रूप में शामिल हुई। वहाँ जाने में उसकी हिचकिचाहट अभी भी मौजूद थी, लेकिन उसके सहयोगी उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गए, और इसलिए उसने स्वीकार कर लिया। उसके पहले वेतन का दिन उसके लिए खुशी का समय था, उसके चेहरे पर एक लंबी-चौड़ी मुस्कान थी।

नियमित काम मिलने, और वास्तविक जीवन का अनुभव हासिल करने से जिसे ज्यादातर लोग पहले कहते थे कि उसे कभी अनुभव नहीं होगा, उसके आत्म-सम्मान में वृध्दि हुई। उसने अपने सहकर्मियों को देखते हुए सावधानी से अपने कपड़ों का चयन करना शुरू कर दिया जिन्हें वह काम करने के लिए पहनती थीं और जो मेकअप वह इस्तेमाल करती थी। उसने स्टोर पर दोस्त बनाए और दूसरों के साथ बातें करने में वह अपना समय वहाँ बिताने लगी। दुकान पर बनाए गए सभी रिश्ते उसे मुफ्त में प्रदान किए गए रिश्ते थे, जो संस्था में छोड़ने के बाद उसके  लिए पहली बार और नया अनुभव था। उसके सहकर्मी उससे जुड़े, और उसका आत्मविश्वास लगातार बढ़ता गया। अब, जब वह अपनी पसंद व्यक्त करने को तैयार होती है, तो उसका चुनाव कभी-कभी “हां” और कभी-कभी “नहीं” होता है। एक पर्यटक के रूप में दिल्ली की यात्रा करना – उसके लिए पहला, और एक अकल्पनीय अनुभव था, जिसने उसे और भी मजबूत किया। वह आत्मविश्वास से भरी नजर आती है, हिचकिचाते हुए कम मुस्कुराती है, और अपनी पसंद के अनुसार और अपनी शर्तों पर जीवन जीने के साथ एक स्वतंत्र महिला होने के लिए वह लगातार काम करती है। उसकी हिम्मत हैरान करने वाली है।

सुश्री विनीता ने जो जख्म अनुभव किए हैं, वे शायद कभी पूरी तरह से ना भरें। मगर फिर भी, उसकी पहचान के अन्य पहलू, उसकी दमदार मानवता, उसका व्यक्तित्व,मजबूत और अधिक मजबूत होता जाता है और उसके भविष्य की कहानी लिखने के लिए पन्ने तैयार कर रहा जो अभी तक लिखा नहीं गया है।