भाषा की शक्ति

उन क्षेत्रों में से एक  जिसमें सामाजिक भूमिका मूल्यवर्द्धन हमारी दृष्टि को तेज करता है वह है- लोगों के बारे में नकारात्मक या सकारात्मक संदेशों को व्यक्त करने में भाषा की शक्ति को पहचानना। कालीकट विश्वविद्यालय के अन्तर्गत सी.डी.एम.आर.पी. के मनोवैज्ञानिक और नेता डॉ.रहीमुद्दीन पी.के. ने चार दिवसीय गहन एस.आर.वी. कार्यशाला में भाग लिया और तुरंत महसूस किया कि कई प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में जो वे पेशेवरों को सिखाते हैं उसकी भाषा प्रकृति में अत्यधिक चिकित्सा केन्द्रित थी। वे जानते थे कि इस तरह के शब्दों के उपयोग से विकलांगतायुक्त लोगों को रोगविषयक वस्तुओं के रूप में देखा जा सकता है, या समस्याओं के रूप में जिनका इलाज किया जा सकता है, और उन्हें पूर्ण नागरिकों या पूर्ण मनुष्यों के बजाय शोध के विषयों के रूप में देखा जा सकता है बजाय इसके कि उन्हें उन लोगों के रूप में देखा जाए जो वास्तव में मानवीय स्थिति की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। । उन्होंने महसूस किया कि वह एस.आर.वी. के पहलुओं को लागू करने के लिए पहला कदम यह उठा सकते हैं, कि भाषा और शब्दावलियों के उपयोग पर ध्यान दिया जाए, जो रोग-निदान भाषा की बजाय नागरिकता और मानवता को बढ़ावा देने वाले हों।

हम जानते हैं कि मानसिकता और दृष्टिकोण को बदलने का एकमात्र उत्तर केवल भाषा बदलना  नहीं हो सकता है, जो न केवल विकलांगतायुक्त लोगों, बल्कि हम सभी को चोट और नुकसान पहुंचाती है। हम जानते हैं कि यह एक बुरी शुरुआत नहीं है। डॉ.रहीमुद्दीन के द्वारा प्रशिक्षित भविष्य के पेशेवर, छात्र और शिष्य, विकलांगतायुक्त लोगों के बारे में और उनके साथ सम्मान की भाषा का उपयोग करने के उनके प्रयासों से लाभान्वित होंगे।