विकलांगता युक्त लोग अपने वरदानों को पूरी तरह से इस्तेमाल कर सकें तथा पूर्ण एंव विस्तारित जीवन बिता सकें इसके लिए आशा, इच्छा और आधे-अधूरे प्रयासों से अधिक कुछ करने की आवश्यकता होती है। वास्तव में, हाशिए के लोगों की स्थिति को बेहतर बनाने के अधिकांश कार्य सामाजिक अवमूल्यन के मूल्यों के खिलाफ जाते हैं, और इसलिए यह समझा जा सकता है कि कई अच्छे प्रयास जल्दी ही और निर्णायक रूप से कुचल दिये जाते हैं। अच्छे से अच्छे प्रयास भी परिस्थितियों, मानसिकताओं और निराशाओं के द्वारा आसानी से विफल किये जा सकते हैं। इस कारण से, लोगों के जीवन को ऊँचा उठाने में मदद करने के हमारे प्रयासों को लगातार, सोच-समझकर, स्पष्ट रूप से, दृढ़ता के साथ, और अक्सर लंबे समय तक किया जाना चाहिए। परिवार को खो देने और पुन: प्राप्त करने की नीचे दी गई कहानी  इस बात को प्रभावशाली ढंग से दर्शाती है।

कई लोगों के लिए, परिवारों से अलग होना जीवन को परिभाषित करने वाला नुकसान बन जाता है, एक शोक जो ह्रदय की गहराईयों में उतर कर बस जाता है। बिना किसी किनारे का, अपनी जड़ों से उखड़ा हुआ और एक भटका जीवन शायद रूपक बन जाते हैं इस बात को दर्शाने के कि इस नुकसान को एक व्यक्ति कैसे अनुभव करता है। किरण के लिए, जिसके जीवन में परिवार का नुकसान जल्दी हुआ, ऐसा लगता है कि यह उसका भी अनुभव था। संस्थागत वातावरण में रहते हुए, जहाँ वह वर्षों तक रही,  इस तथ्य से लोग वाकिफ थे कि उसकी एक बहन थी, लेकिन उसके विषय कोई भी विवरण ज्ञात नहीं था। यह धारणा वर्षों से चली आ रही थी। वास्तव में, उसके दस्तावेज में यह लिखा था कि उसके साथ पुनर्मिलन या संपर्क करने की कोई संभावित उम्मीद नहीं थी।

एक छोटे से समुदाय में पड़ोसी के रूप में खुद को  पुनर्स्थापित करने के बाद, जो लोग उसका समर्थन कर रहे थे, उन्होंने यह पता लगाना शुरू कर दिया कि क्या उसक परिवार का कोई सदस्य नहीं है जिनके बारे में पता लगाया जा सके। वे वहीं नहीं रुके – वे ऐसे संबंधों को सक्रिय रूप से तलाशने के लिए पूछने, ढूढ़ने और देखने लगे। इसमें बहुत देर नहीं लगी … कि कोई किसी को जानता था… जो किसी और को जानता था … जो उस क्षेत्र का पता लगाने में सक्षम था जहां उसके बहन के रहने की बात बतायी गयी थी। यह जगह कई घंटे दूर था, और किरण की बहन के पास कोई टेलीफोन भी नहीं था।

लेकिन वे वहां नहीं रुके। उन्होंने किरण की बहन के निवास स्थान के निकट एक स्थानीय दुकान का पता लगाया। उन्हें पता चला कि वह कभी-कभी दुकान के फोन का इस्तेमाल करती थी। उन्होंने उसके लिए एक संदेश दिया।

वे उससे संपर्क स्थापित कर पाए और उन्हें बताया गया कि उनकी बहन मुलाकात करने  के लिए यात्रा नहीं कर पाएगी क्योंकि यात्रा लंबी थी।

लेकिन वे वहां नहीं रुके। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि किरण और उसकी बहन समय-समय पर फोन पर बात करने में सक्षम हो सकें, जिससे उनका रिश्ता बन पाया।

लेकिन वे वहां नहीं रुके। उन्होंने एक वीडियो कॉल की व्यवस्था की ताकि कई सालों में पहली बार वे एक-दूसरे को देख सकें।

लेकिन वे वहां नहीं रुके। उन्होंने परिवहन का आयोजन किया। अंत में, एक पुनर्मिलन हुआ, और किरण के 8 रिश्तेदार बड़े आनंद के साथ उसके जीवन में पुन: प्रवेश कर पाए। किरण अब किसी ना किसी तरीके से बड़ी लगने लगी है, उसे खुद पर ज्यादा यकीन होने लगा है,  वह अपनी जड़ों से ज्यादा जुड़ी नजर आती है, और इन सब के पीछे निश्चित तौर पर उसका “अपने लोगों” को जान पाना है।

यह पुनर्मिलन कई मायनों में शिक्षाप्रद है, लेकिन अभी जो बात सामने आ रही है, वह यह है कि विकलांगता युक्त लोगों को मजबूत संबंध और पूर्ण, समृद्ध जीवन जीने में मदद करने के लिए वास्तविक फोकस की आवश्यकता होती है। किरण का समर्थन करने वाली टीम ने अफवाह और पूर्वानुमानों पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने छानबीन की और जांच-पड़ताल की। उन्होंने हार नहीं मानी। उनका इस प्रकार का जासूसी का काम कई महीनों तक चलता रहा जिसमें उन्होंने अगले कदमों पर विचार विमर्श किया। निराशाएँ भी आईं और उन्हें स्वीकारा गया और लक्ष्य को फिर से क्षितिज पर रखा गया। नए प्रयास किए गए; विभिन्न दिशाओं में खोजबीन की गयी। उसके लिए एक फोकस जरूरी था ताकि एक परिणाम पाया जा सके जो मायने रखता है। यह संकल्प तथा पूर्वधारणाओं को स्वीकार नहीं करने का दृढ़ निश्चय, आसान कार्यों पर आगे बढ़ना और हार नहीं मानने के कारण ही किरण के जीवन में इस तरह का महत्वपूर्ण परिणाम आ पाया। बहुत सारे लोग इसके कारण लाभान्वित हो सके।